Tuesday, April 15, 2008

महंगाई के साइड इफेक्ट

बाज़ार में घुसते ही जिस चीज़ के दर्शन सबसे पहले होते हैं वह है महंगाई। महंगाई देखकर आदमी यह मनाने को विवश हो जाता है कि दुनिया तेजी से तरक्की कर रही है। पहले जेब में पैसा लेकर बाज़ार जाते थे और सौदा थैला में भरकर लाते थे । आज थैला भरकर पैसा ले जाओ सौदा मुठ्ठी में भरकर लाओ । हो सकता आने वाले समय में आटा कैप्सूल में मिलाने लगे और दाल का पानी इंजेक्शन में मिलाने लगेगा

हमेश छुई मुई और लगाने वाली श्रीमातियाँ भी महंगाई के नाम पर गुस्से से फनफना उठती है । उनकी मुठ्ठियाँ बाँध जाती है। बेचारे श्रीमान जी थोड़े और बेचारे हो जाते है। सरकार गृहस्थों का कोपभाजन बन जाती है। कभी लहसुन टू कभी प्याज़ , कभी आलू तो कभी चीनी उसकी भेंट ले लेते हैं।

महंगाई सरकारों के आने और जाने की बहाना बन जाती है। महंगाई मनोरंजन का भी सस्ता एवं सर्व सुलभ साधन है। भारतवासी कुस्ती देखने के बड़े शौकीन होते है। जब भी जनता के पेट में दर्द होता है सरकार उसे अस्वाशन का सीरप पिला देती है । हम महंगाई के खिलाफ लडेंगे । सुनकर जनता को दो पल के लिए राहत महसूस होती है । वह नंगी आंखों से सरकार और महंगाई का मल्ल्युध्धा देखती रहती है।

No comments: