इस साल मुम्बई में ठंढ ने सभी तरह के रेकॉर्ड को ध्वस्त करके ठंढ चरम पर पहुँच गई। पिछले ४४ सालों के रेकॉर्ड को ठंढ ने तोड़ दिया। और पूरी मायानगरी कांप गई। लेकिन इस साल मुम्बई के अलावा पूरे देश वाशियों को उमस भरी गर्मी ज्यादा झेलनी पड़ सकती है। क्योंकि इप्च्क की रिपोर्ट ने जिस तरह के संकेत दिए हैं , उससे यही मालूम पड़ता हैं की इस बार लू के थपेडे ज्यादा सहने पडेगें। मौसम विग्यनिओं की बात माने तो उनका कहना है की पिछले दस सालों से शीत लहर और लू के थपेडों में बढोत्तरी हुई है। इस साल गर्मियों में नए - नए रेकॉर्ड बनने की संभावना है। वहीं पिछले महीने नागपुर और विदर्भ में ओले गिरे। एक तो पहले बेमौसम बारिश फ़िर ओले गिराने से पहले से ही जख्म खाए किसानों के जख्म और हरे हो गए । ये सब हो रहा है ग्लोबल वार्मिंग की वजह से ।
इप्च्क यानि इंटर गवर्नमेंट पैनल ऑन क्लीअमेत चेंज की रिपोर्ट भी यही कहती है की ग्लोबल वार्मिंग की वजह से ये सब हो रहा है। रिपोर्ट ने ये संकेत दे दिए हैं की इसबार पारा ४५ के पार रहेगा। मुम्बई जैसे शहर में जहाँ सम शीतोष्ण रहता है, वहां भी पारा ने अपना असर दिखाना शुरू कर दिया है। अभी अप्रैल का महीना ख़त्म होने के कगार में चल रहा है। और यहाँ गर्मी ने सबका कचूमर निकालना शुरू कर दिया है। लोकल ट्रेन में भेड़ बकरी की तरह ठुंसे रहने वाले यात्रियों की जबान बदल गई है.पहले कहते थे गर्दी (भीड़) बहुत ज्यादा है। अब कहतें हें- गर्मी ज्यादा है.अब अगर उत्तर भारत की बात करें तो तो वहाँ गर्मी और ठंढी का गढ़ माना जाता है। गर्मी में जहाँ जाने जाती है तो वहां ठंढी में भेड़ जाने जाती है। लेकिन अभी तक वहाँ तपन मई में शुरू होती थी। और बारिश के पहले तक असर रखती थी। लेकिन इस बार मई के बिना इन्तजार किए ही गर्मी ने दस्तक दे दी। और पारा अभी से ही ४५ के पार हो गया। अगर में में तो लोग पारा के ऊपर चढाने से बहाल हो गए हैं।
अब सवाल ये उठता है की प्रकृति का परिवर्तन है, होता रहता है.लेकिन ये परिवर्तन घातक क्यों साबित हो रहा है।
धरती को गर्म से बचानेकी पहल पर पर ग्लोबल वार्मिंग के चलते दुनिया कई लोग जागरूक भी हो गए हैं। ग्लोबल वार्मिंग के बढ़ते खतरों के चलते जागरूकता निर्माण कराने के लिए एक घंटे के लिए बिजली का उपयोग नहीं क्या गाया। "अर्थ अवर " नाम से किए गए इस प्रयोग में विश्व के ३७१ देशों में रात्रि ८ से ९ बजे तक बिजली का उपयोग नहीं किया गया । इस तरह से ग्लोबल वार्मिंग से बचाने के लिए तमाम तरह के प्रयोग किए जाते हैं। लेकिन जरूरत है की प्रकृति से छेड़- छाड़ नहीं करे। अगर अपनी आदतों में सुधर नहीं हुआ तो कितना भी जागरूकता फैला लो , सूर्य देवता तो आग उगलेंगे ही ।
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