Thursday, July 11, 2013

एनपीएः परिभाषा एवं परिचय

एनपीएः परिभाषा एवं परिचय

बैंक के कार्य को मोटे तौर पर दो भागों में बाँटा जा सकता हैः-1. लोगों का पैसा जमा के रुप में स्वीकार करना और 2. उस जमा पैसे को ऋण के रुप में  जरुरतमंद लोगों के बीच वितरित करना। ऋण एक निष्चित अवधि के लिए स्वीकृत किया जाता है, जो मुकर्रर समय के अंदर ब्याज व किस्त के रुप में ऋणी को चुकाना होता है। जब तक ऋणी समय पर ब्याज व किस्त अपने ऋण खाता में जमा करता रहता है, तो उसे निष्पादित परिसंपत्ति या स्टैंडर्ड खाता कहा जाता है, पर जैसे ही उस खाता में ब्याज या किस्त या फिर दोनों जमा होना बंद हो जाता है, तो उसे गैर निष्पादित परिसंपत्ति कहते हैं। बोल-चाल की भाषा में इसे नन-परफोरमिंग असेट (एनपीए) कहा जाता है।

भारत में आधुनिक स्वरुप वाले एनपीए के सिंद्धात का आगमन 31 मार्च, 1993 में हुआ था। इस संकल्पना को अमलीजामा पहनाने के पीछे भारतीय रिजर्व बैंक का उद्देष्य था-बैंकों द्वारा हर साल घोषित किये जाने वाले लाभ में पारदर्शिता लाना। इसके पहले, आमतौर पर बैंक द्वारा वैसी परिसंपत्तियाँ, जिनसे न तो किसी प्रकार की आय होती थी और न ही वसूली की संभावना होती थी, उसे लाभ-हानि के खाते में, लाभ के मद में दर्शाया जाता था। संपत्ति की गुणवत्ता व वसूली की संभावना के मुताबिक एनपीए को पुनः तीन भागों में विभाजित किया गया हैः-1. सब-स्टैंडर्ड असेट, 2. डाउटफुल असेट एवं 3. लॉस असेट। कोई खाता एनपीए न हो इसके लिए उक्त खाता को पहले स्पेशल मेंशन अकाऊंट (एसएमए) में वर्गीकृत किया जाता है। इस वर्गीकरण को अर्ली वार्निंग सिग्नल की संज्ञा दी गई है। बैंक एसएमए वाले खातों में रिकवरी के प्रति विशेष रुप से सर्तक रहते हैं।

No comments: