Wednesday, October 9, 2013

झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई

रानी लक्ष्मीबाई 

स्त्री जो उठी तो सभी को चकित कर दिया 

लक्ष्मी बाई भारतीय नव संस्कृति की सबसे पूज्यनीय तथा माननीय नारी हैं। बच्चे तथा बृद्ध सभी उनको आदर्श नारी के रूप में देखते हैं। आईए जानते हैं उनका वास्तविक नाम क्या था।

गंगा नदी 
उनका वास्तविक नाम मणिकर्निक था। ये जानना अधिक विस्मयकारी है कि ये नाम गंगा नदी का है। बनारस जिसका वास्तविक नाम वाराणसी है, वहां पर गंगा नदी को मणिकर्निका कहते हैं। संस्कृत भाषा में एक श्लोक भी है: वाराणसी पुरे मणिकर्निका तीरे।

घर का नाम 
उनका घर का नाम या यूँ कहें कि कच्चा नाम मनु था जो कि उनके वास्तविक नाम से स्वै-स्वभाविक है।

छबीली 
उनका एक दूसरा घरेलू नाम था जो उनके पिता के राजा ने रखा था। वो नाम था छबीली जिसका अर्थ होता है चञ्चल। ये नाम बिठूर के पेश्वा बाजीराव ने दिया था जो कि मणिकर्निका को अपनी पुत्री के जैसा मानते थे।

जन्म 
रानी लक्ष्मीबाई का जन्म वाराणसी जनपद के भदैनी नामक नगर में हुआ था। इनकी माता का नाम भागीरथी बाई तथा पिता का नाम मोरोपंत तांबे था। मोरोपंत एक मराठी थे और मराठा बाजीराव की सेवा में थे। माता भागीरथीबाई एक सुसंस्कृत, बुद्धिमान एवं धार्मिक महिला थीं।

अध्ययन 
मनु जब चार वर्ष की थीं तब उनकी माँ की मृत्यु हो गयी। चूँकि घर में मनु की देखभाल के लिए कोई नहीं था इसलिए पिता मनु को अपने साथ बाजीराव के दरबार में ले गए जहाँ चंचल एवं सुन्दर मनु ने सबका मन मोह लिया। मनु ने बचपन में शास्त्रों की शिक्षा के साथ शस्त्रों की शिक्षा भी ली।

विवाह 
सन १८४२ में इनका विवाह झाँसी के मराठा शासित राजा गंगाधर राव निवालकर के साथ हुआ, और ये झाँसी की रानी बनीं। विवाह के उपरान्त इनका नाम लक्ष्मीबाई रखा गया।

माता बनना 
सन 1851 में रानी लक्ष्मीबाई ने एक पुत्र को जन्म दिया पर चार महीने की आयु में ही उसकी मृत्यु हो गयी। सन 1853 में राजा गंगाधर राव का बहुत अधिक स्वास्थ्य बिगड़ने पर उन्हें दत्तक पुत्र लेने की सलाह दी गयी।

पति का देहान्त 
 पुत्र गोद लेने के बाद राजा गंगाधर राव की मृत्यु 21 नवंबर 1853 में हो गयी। दत्तक पुत्र का नाम दामोदर राव रखा गया।

ब्रिटिश राज के साथ तनाव 
डलहौजी की राज्य हड़प नीति के अन्तर्गत ब्रितानी राज्य ने दामोदर राव जो उस समय बालक ही थे, को झाँसी राज्य का उत्तराधिकारी मानने से इनकार कर दिया, तथा झाँसी राज्य को ब्रितानी राज्य में मिलाने का निश्चय कर लिया।

याचना 
तब रानी लक्ष्मीबाई ने ब्रितानी वकील जान लैंग की सलाह ली और लंदन की अदालत में मुकदमा दायर किया। यद्यपि मुकदमे में बहुत बहस हुई परन्तु इसे खारिज कर दिया गया। ब्रितानी अधिकारियों ने राज्य का खजाना ज़ब्त कर लिया और उनके पति के ऋण को रानी के सालाना खर्च में से काट लिया गया। इसके साथ ही रानी को झाँसी के दुर्ग को छोड़ कर झाँसी के रानीमहल में जाना पड़ा। पर रानी लक्ष्मीबाई ने हर मूल्य पर झाँसी राज्य की रक्षा करने का निश्चय कर लिया था।

उनके घोड़े 
लक्षमी बाई को घुड़स्वारी में अधिक रुची थी। उनके प्रिय घोड़ों के नाम थे सारङ्गी, पवन तथा बादल। ये माना जाता है कि वो बादल पर बैठ कर ही दुर्ग से निकली थीं।

झाँसी का युद्ध 
झाँसी 1857 के संग्राम का एक प्रमुख केन्द्र बन गया जहाँ हिंसा भड़क उठी। रानी लक्ष्मीबाई ने झाँसी की सुरक्षा को सुदृढ़ करना शुरू कर दिया और एक स्वयंसेवक सेना का गठन प्रारम्भ किया। इस सेना में महिलाओं की भर्ती भी की गयी और उन्हें युद्ध प्रशिक्षण भी दिया गया। साधारण जनता ने भी इस संग्राम में सहयोग दिया।

पड़ोसीयों का आक्रमण 
1857 के सितंबर तथा अक्टूबर माह में पड़ोसी राज्य ओरछा तथा दतिया के राजाओं ने झाँसी पर आक्रमण कर दिया। रानी ने सफलता पूर्वक इसे विफल कर दिया। 1857 के जनवरी माह में ब्रितानी सेना ने झाँसी की ओर बढना शुरू कर दिया और मार्च के महीने में शहर को घेर लिया। दो हफ़्तों की लडाई के बाद ब्रितानी सेना ने शहर पर कब्जा कर लिया। परन्तु रानी, दामोदर राव के साथ अंग्रेजों से बच कर भागने में सफल हो गयी। रानी झाँसी से भाग कर कालपी पहुंची और तात्या टोपे से मिली।

तात्या टोपे 
तात्या टोपे और रानी की संयुक्त सेनाओं ने ग्वालियर के विद्रोही सैनिकों की मदद से ग्वालियर के एक किले पर कब्जा कर लिया. 17 जून 1858 को ग्वालियर के पास कोटा-की-सराय में ब्रिटिश सेना से लड़ते - लड़ते रानी लक्ष्मीबाई की मौत हो गई. लड़ाई की रिपोर्ट में ब्रिटिश जनरल ह्यूरोज़ ने टिप्पणी की कि रानी लक्ष्मीबाई अपनी "सुंदरता, चालाकी और दृढ़ता के लिए उल्लेखनीय" और "विद्रोही नेताओं में सबसे खतरनाक" थीं।

सुभद्रा कुमारी चौहान 

उनकी कविता ने इस वीराङ्गणा की गाथा को सर्वदा अमर कर दिया।
खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी। 
रानी बढ़ी कालपी आयी कर सौ मील निरंतर पार.....
घोड़ा थककर गिरा भूमि पर गया स्वर्ग तत्काल सिधार....
यमुना तट पर अंग्रेजों ने फिर खाई रानी से हार.... 








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